Monday, September 25, 2023

' (एकादशी)। Ekādaśī रहस्य एवं महत्व

(एकादशी)। Ekādaśī  रहस्य एवं महत्व –


एकादशी जिसका अर्थ है "ग्यारह", एक हिंदू कैलेंडर माह में होने वाले दो चंद्र चरणों में से प्रत्येक का ग्यारहवां चंद्र दिवस ( तिथि ) है - शुक्ल पक्ष (उज्ज्वल चंद्रमा की अवधि) और कृष्ण पक्ष ( लुप्त होती चंद्रमा की अवधि)।


वैदिक संस्कृति में प्राचीन काल से ही योगी और ऋषि इन्द्रिय क्रियाओं को भौतिकवाद से देवत्व की ओर मोड़ने को महत्व देते आ रहे हैं। एकादशी का व्रत उसी साधना में से एक है।

 शास्त्रों के अनुसार एकादशी में दो शब्द होते हैं एक (1) और दशा (10)। 

संसार की वस्तुओं से दस इंद्रियों और मन की दस क्रियाएं भगवान के लिए सच्ची एकादशी हैं ।

ऐसा कहा जाता है कि एकादशी का महत्व भगवान कृष्ण ने पांडव भाइयों में सबसे बड़े युधिष्ठिर को बताया था। भक्त समृद्धि की तलाश के लिए उपवास करते हैं, और बाद में जीवन में मोक्ष प्राप्त करते हैं।

ब्रह्म-वैवर्त पुराण में यह कहा गया है कि जो एकादशी के दिन उपवास करता है वह सभी प्रकार के पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है और पवित्र जीवन में आगे बढ़ता है।

अलग-अलग एकादशी के पीछे अलग-अलग कहानी है।

भगवद्गीता के प्रथम अध्याय में भगवान कृष्ण अर्जुन को "यदि कोई व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है, तो मैं उसके सभी पापों को भस्म कर दूंगा और उसे अपना दिव्य धाम प्रदान करूंगा...

 वास्तव में, सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने के लिए एकादशी सबसे पुण्य का दिन है, और यह सभी को लाभ पहुंचाने के लिए प्रकट हुई है। ”

 शास्त्रों के अनुसार, एकादशी और चंद्रमा की गति का मानव मन से सीधा संबंध है। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दौरान, हमारा दिमाग अधिकतम दक्षता प्राप्त करता है जिससे मस्तिष्क को ध्यान केंद्रित करने की बेहतर क्षमता मिलती है।

कहा जाता है कि आध्यात्मिक साधक मन पर इसके अनुकूल प्रभाव के कारण एकादशी के दो मासिक दिनों को अत्यधिक पूजा और ध्यान में समर्पित करते हैं।

भक्त इस दिन उपवास रखते हैं, पूजा और ध्यान करके पूरी रात जागरण करते हैं। कुछ पानी की एक बूंद भी नहीं लेते। जो लोग पूरी तरह से उपवास नहीं कर सकते वे कुछ हल्का फल और दूध ले सकते हैं। उपवास करने से हम सतर्क और एकाग्र होंगे और ईश्वर के प्रति भक्ति विकसित और प्रगाढ़ होगी। यह भावनाओं और इंद्रियों की भी जांच करता है।

एकादशी की कथा

सतयुग में मुर्दानव नाम का एक दैत्य रहता था। उसने पृथ्वी पर सभी अच्छे लोगों और भक्तों को आतंकित किया और साथ ही उसने सभी देवताओं को भी डरा दिया। इसलिए देवताओं ने स्वर्ग छोड़ दिया और भगवान विष्णु की शरण ली। उन्होंने भगवान विष्णु से उनकी रक्षा करने की प्रार्थना की। अपने भक्तों के प्रति भगवान की दया असीम है। इसलिए वह तुरंत अपने सबसे तेज वाहन "गरुड़" पर सवार हो गए। उन्होंने अविश्वसनीय शक्ति के मुर्दानव के साथ 1000 वर्षों तक लगातार संघर्ष किया और फिर भी वे पूरी ऊर्जा और शक्ति के साथ लड़ रहे थे। इसलिए भगवान विष्णु ने अपनी रणनीति बदलने का फैसला किया।

भगवान, विष्णु ने अभिनय किया जैसे कि वह युद्ध से थक गए थे और हिमालय की एक गुफा में छिप गए थे। उसने इस विशाल गुफा में एक झपकी लेने का निश्चय किया। भगवान विष्णु अपनी सभी दसों इंद्रियों और भीतर के मन के साथ विश्राम कर रहे थे ।

मुर्दानव भगवान विष्णु का पीछा करते हुए गुफा तक पहुंचे। उसने उसे गुफा के अंदर सोते हुए देखा और उसके पीछे हो लिया। उसने भगवान विष्णु को मारने के लिए अपनी तलवार उठाई। जैसे ही वह तलवार चलाने वाला था, अचानक भगवान विष्णु के शरीर से तलवार से खेलती हुई एक अत्यंत सुंदर और चमकदार महिला निकली।

मुर्दानव ने उसकी सुंदरता का लालच दिया और उससे शादी करने के लिए कहा। उसने कहा, "मैं उससे शादी करूंगी जो मुझे युद्ध में हरा सकता है" मुरदानव उसके प्रस्ताव पर सहमत हो गया। वह उस दिव्य महिला से लड़ने लगा। अंततः लड़ाई के दौरान उस दिव्य महिला ने मुरदानव को हरा दिया और उसका वध कर दिया।

लड़ाई का शोर सुनकर भगवान विष्णु जागे और उन्होंने उस महिला को देखा जिसने मुरदानव का वध किया था। स्वयं से प्रकट हुई उस स्त्री को भगवान विष्णु ने एकादशी नाम से पुकारा। वह पूर्ण चंद्रमा का ग्यारहवां दिन था। भगवान विष्णु उसके काम से प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। एकादशी ने भगवान विष्णु से कहा कि 'जैसे ही मैं आपके एकादश इंद्रियों (शरीर की ग्यारह इंद्रियों) से विकसित हुआ हूं, मुझे एकादशी के रूप में जाना जाएगा। मैं तपस्या से भरा हुआ हूं इसलिए मेरी इच्छा है कि लोग इस दिन एकादशी व्रत का पालन करें और अपनी एकादश इंद्रियों (इंद्रियों) को नियंत्रित करें। मेरे व्रत के दिन किसी को भी अनाज जैसे चावल, सेम आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।


भगवान विष्णु सहमत हो गए और तब से सभी सनातनी  चंद्रमा के उज्ज्वल आधे और चंद्रमा के अंधेरे आधे के 11 वें दिन उपवास या फलाहारी खाद्य पदार्थ खाकर एकादशी व्रत करते हैं।

 साथ ही भगवान विष्णु ने कहा कि जो भक्त व्रत और प्रार्थना के साथ एकादशी के दिन का पालन करते हैं, उन्हें उनकी सबसे अच्छी कृपा मिलती है! 

यह कहानी एक धर्मग्रंथ पदम पुराण पर आधारित है।

हिंदू धर्म और जैन धर्म में, एकादशी को एक आध्यात्मिक दिन माना जाता है और आमतौर पर फलियाँ और अनाज से उपवास करके मनाया जाता है, क्योंकि उन्हें पाप से दूषित माना जाता है। इसके बजाय केवल फल, सब्जियां और दूध से बने पदार्थ ही खाए जाते हैं। 

संयम की यह अवधि एकादशी के दिन सूर्योदय से अगले दिन सूर्यास्त तक शुरू होती है।

 नियमों में कहा गया है कि आठ साल से अस्सी साल के बीच के किसी भी व्यक्ति को उपवास करना चाहिए, जिसमें पानी छोड़ना भी शामिल है। हालांकि, जो लोग बीमार हैं, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं, या गर्भवती हैं, उन्हें नियम से छूट दी गई है और वे दूध और फलों सहित हल्के भोजन का सेवन कर सकते हैं।


एकादशियों की सूची

आमतौर पर एक कैलेंडर वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। कभी-कभी, लीप वर्ष में दो अतिरिक्त एकादशी होती हैं। भारतीय कैलेंडर में लीप वर्ष वह वर्ष है जिसमें एक अतिरिक्त चंद्र मास (अधिक मास) होता है, यह हर तीसरे वर्ष होता है। प्रत्येक एकादशी का एक अलग नाम, महत्व होता है और यह या तो भगवान के किसी अवतार या भगवान की किसी लीला या पुराणों या इतिहास से किसी विशिष्ट घटना/व्यक्ति/देवता से जुड़ी होती है। साल की 24 एकादशियों के नाम इस प्रकार हैं:-


चैत्र मास

कृष्ण पक्ष - पापविमोचनी एकादशी

शुक्ल पक्ष - कामदा एकादशी


वैसाख मास

कृष्ण पक्ष - वरुथिनी एकादशी 

शुक्ल पक्ष - मोहिनी एकादशी


ज्येष्ठ मास

कृष्ण पक्ष - अपरा एकादशी

शुक्ल पक्ष - निर्जला या भीम एकादशी


आषाढ़ मास

कृष्ण पक्ष - योगिनी एकादशी

शुक्ल पक्ष - देवशयनी एकादशी


श्रवण मास

कृष्ण पक्ष - कामिका एकादशी

शुक्ल पक्ष - पुत्रदा एकादशी


भाद्रपद मास

कृष्ण पक्ष - आनंद एकादशी

शुक्ल पक्ष - पार्श्व एकादशी


अश्विन मास

कृष्ण पक्ष - इंदिरा एकादशी

शुक्ल पक्ष - पापाकुंशा एकादशी


कार्तिक मास

कृष्ण पक्ष - रमा एकादशी

शुक्ल पक्ष - प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी


मार्गशीर्ष मास

कृष्ण पक्ष - वैकुंठ या त्रिकोटी एकादशी

शुक्ल पक्ष - मोक्षदा एकादशी


पौष मास

कृष्ण पक्ष - सफला एकादशी

शुक्ल पक्ष - पुत्रदा एकादशी


माघ मास

कृष्ण पक्ष - शत तिल एकादशी

शुक्ल पक्ष - भीमी या जया एकादशी


फाल्गुन मास

कृष्ण पक्ष - उत्पन्ना एकादशी

शुक्ल पक्ष - आमलकी एकादशी


लीप वर्ष में, जिसमें एक अतिरिक्त मास होता है:-

अधिक या पुरुषोत्तम मास

कृष्ण पक्ष - परमा एकादशी

शुक्ल पक्ष - पद्मिनी एकादशी

Monday, February 1, 2021

नाथूराम गोडसे और महात्मा गांधी

 नाथूराम गोडसे और महात्मा गांधी

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुआ बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया | नाथूराम गोड़से समेत 17 अभियुक्तों पर गांधी जी की हत्या का मुकदमा चलाया गया | इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था | हालाँकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।


लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी जी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया | नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की |

15 नवंबर 1949 को नाथू राम गोडसे को फांसी दी गई थी। उन पर महात्मा गाँधी की हत्या का आरोप था। आज़ादी के बाद करीब 60 वर्षों तक कांग्रेस का हमारे देश पर शासन रहा। इसलिए स्वाभाविक था कि गोडसे को एक आतंकवादी के रूप में प्रदर्शित किया गया। परंतु क्या गोडसे हिंसा का समर्थन करते थे? इस लेख को पढ़कर आप सत्य से अवगत होंगे की नहीं गोडसे राष्ट्रप्रेमी थे।

60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण “मैंने गांधी को क्यों मारा”

"नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के मुख्य अंश”

1. नाथूराम का विचार था कि गांधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी |कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे | नाथूराम गोड़से को भय था गांधी जी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे |

2.1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था | भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी जी के पास गयी लेकिन गांधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया।

3. महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया | महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके |

4. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी जी ने अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे | गांधी जी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया |

5. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी | पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया।

6. गांधी जी कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए | अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने | जबकि हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था | गांधी जी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी | उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का कार्य किया | गांधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता |



7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली | मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

8. महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी जी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया | लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके |

9. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया | गांधी जी अपनी मांग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे | इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे |

10. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गांधी जी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गांधी जी ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी जी ने कुछ नहीं किया |

11. धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे | जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी + उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे | बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ |

12. कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया |

13. गांधी जी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा। वही दूसरी ओर गांधी जी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम कहकर पुकारते थे |

14. कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

15. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

16. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया | केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी ।

महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या नाजायज | गांधी जी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की |

उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया | नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की | मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के ,एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ | गांधी जी की हत्या के सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था |

नाथूराम गोड़से जी द्वारा अदालत में दिए बयान के मुख्य अंश.....

मैंने गांधी को नहीं मारा

मैंने गांधी का वध किया है

गांधी वध

वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के लिए घातक साबित हो रहे थे। जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता हैं। मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत निति के प्रति गांधीजी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे मजबूर किया। पाकिस्तान को 55 करोड़ की गैरवाजिब मांग को लेकर गांधी जी अनशन पर बैठे। बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओ की आपबीती और दुर्दशा ने मुझे हिला के रख दिया था। अखंड हिन्दू राष्ट्र गांधी जी के कारण मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक रहा था। बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ो में बटना

विभाजित होना असहनीय था। अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे। मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को गांधी जी मानते जा रहे थे। मैंने ये निर्णय किया के भारत माँ को अब और विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना हैं। इसलिए मुझे गांधी को मारना ही होगा।

और मैंने इसलिए गांधी को मारा.....

मुझे पता हे इसके लिए मुझे फांसी होगी मैं इसके लिए भी तैयार हूँ। और हाँ यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे तो मैं यह अपराध बार बार करूँगा

हर बार करूँगा। और जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने लगे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन नहीं करना।


मुझे फ़ासी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज और दूसरे हाथ में अखंड भारत का नक्शा हो। मैं फ़ासी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय जय बोलना चाहूँगा


हे भारत माँ। मुझे दुःख हे मैं तेरी इतनी ही सेवा कर पाया।

नाथूराम गोडसे

Thursday, December 31, 2020


1 जनवरी नया साल या खतना दिवस? जानिए सच।


 बाइबिल में नए विधान में चैप्टर लूकस आयत 21 में लिखा है 

जीसस क्राइस्ट के जन्म के आठवें दिन उनका खतना हुआ और उसी दिन उनका नाम येशु रखा गया।

विश्व में चर्च इस दिन को खतना दिवस के रूप में मनाते है क्योंकि वो जानते है।

मगर आप दिसम्बर मतलब दसवें महीने को बारहवाँ महीना मानते हो। 

रोमन कलेंडर के हिसाब से भी

September- सातवां महीना

October- आठवां महीना

November- नोंवां महीना

December- दसवां महीना

और बेवकूफी के साथ 1 जनवरी को नया साल मनाते हैं।

1 जनवरी प्रकृति में कुछ नया नहीं होता फिर आपके लिए कुछ नया कैसे हो सकता है?

मानसिक गुलामी में और मौज मस्ती में वास्तविकता को नज़रंदाज़ मत करें।

धन्यवाद🙏

आपका हितैषी
योगीराज सिंह ठाकुर

Friday, December 18, 2020

ब्राह्मण शब्द को लेकर भ्रांतियां एवं उनका निवारण,

 ब्राह्मण शब्द को लेकर भ्रांतियां एवं उनका निवारण,

ब्राह्मण शब्द को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं। इनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। क्यूंकि हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातिवाद है। ब्राह्मण शब्द को सत्य अर्थ को न समझ पाने के कारण जातिवाद को बढ़ावा मिला है।


शंका 1 ब्राह्मण की परिभाषा बताये?

समाधान-

पढने-पढ़ाने से,चिंतन-मनन करने से, ब्रह्मचर्य, अनुशासन, सत्यभाषण आदि व्रतों का पालन करने से,परोपकार आदि सत्कर्म करने से, वेद,विज्ञान आदि पढने से,कर्तव्य का पालन करने से, दान करने से और आदर्शों के प्रति समर्पित रहने से मनुष्य का यह शरीर ब्राह्मण किया जाता है।-मनुस्मृति 2/28


शंका 2 ब्राह्मण जाति है अथवा वर्ण है?


समाधान- ब्राह्मण वर्ण है जाति नहीं। वर्ण का अर्थ है चयन या चुनना और सामान्यत: शब्द वरण भी यही अर्थ रखता है। व्यक्ति अपनी रूचि, योग्यता और कर्म के अनुसार इसका स्वयं वरण करता है, इस कारण इसका नाम वर्ण है। वैदिक वर्ण व्यवस्था में चार वर्ण है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।


ब्राह्मण का कर्म है विधिवत पढ़ना और पढ़ाना, यज्ञ करना और कराना, दान प्राप्त करना और सुपात्रों को दान देना।


क्षत्रिय का कर्म है विधिवत पढ़ना, यज्ञ करना, प्रजाओं का पालन-पोषण और रक्षा करना, सुपात्रों को दान देना, धन ऐश्वर्य में लिप्त न होकर जितेन्द्रिय रहना।


वैश्य का कर्म है पशुओं का लालन-पोषण, सुपात्रों को दान देना, यज्ञ करना,विधिवत अध्ययन करना, व्यापार करना,धन कमाना,खेती करना।


शुद्र का कर्म है सभी चारों वर्णों के व्यक्तियों के यहाँ पर सेवा या श्रम करना।


शुद्र शब्द को मनु अथवा वेद ने कहीं भी अपमानजनक, नीचा अथवा निकृष्ठ नहीं माना है। मनु के अनुसार चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य एवं शूद्र आर्य है।- मनु 10/4


शंका 3- मनुष्यों में कितनी जातियां है ?


समाधान- मनुष्यों में केवल एक ही जाति है। वह है "मनुष्य"। अन्य की जाति नहीं है।


शंका 4- चार वर्णों का विभाजन का आधार क्या है?


समाधान- वर्ण बनाने का मुख्य प्रयोजन कर्म विभाजन है। वर्ण विभाजन का आधार व्यक्ति की योग्यता है। आज भी शिक्षा प्राप्ति के उपरांत व्यक्ति डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि बनता है। जन्म से कोई भी डॉक्टर, इंजीनियर, वकील नहीं होता। इसे ही वर्ण व्यवस्था कहते है।


शंका 5- कोई भी ब्राह्मण जन्म से होता है अथवा गुण, कर्म और स्वाभाव से होता है?


समाधान- व्यक्ति की योग्यता का निर्धारण शिक्षा प्राप्ति के पश्चात ही होता है। जन्म के आधार पर नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति के गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर उसके वर्ण का चयन होता हैं। कोई व्यक्ति अनपढ़ हो और अपने आपको ब्राह्मण कहे तो वह गलत है।


मनु का उपदेश पढ़िए-


जैसे लकड़ी से बना हाथी और चमड़े का बनाया हुआ हरिण सिर्फ़ नाम के लिए ही हाथी और हरिण कहे जाते है वैसे ही बिना पढ़ा ब्राह्मण मात्र नाम का ही ब्राह्मण होता है।-मनुस्मृति 2/157


शंका 6-क्या ब्राह्मण पिता की संतान केवल इसलिए ब्राह्मण कहलाती है कि उसके पिता ब्राह्मण है?


समाधान- यह भ्रान्ति है कि ब्राह्मण पिता की संतान इसलिए ब्राह्मण कहलाएगी क्यूंकि उसका पिता ब्राह्मण है। जैसे एक डॉक्टर की संतान तभी डॉक्टर कहलाएगी जब वह MBBS उत्तीर्ण कर लेगी। जैसे एक इंजीनियर की संतान तभी इंजीनियर कहलाएगी जब वह BTech उत्तीर्ण कर लेगी। बिना पढ़े नहीं कहलाएगी। वैसे ही ब्राह्मण एक अर्जित जाने वाली पुरानी उपाधि हैं।


मनु का उपदेश पढ़िए-


माता-पिता से उत्पन्न संतति का माता के गर्भ से प्राप्त जन्म साधारण जन्म है। वास्तविक जन्म तो शिक्षा पूर्ण कर लेने के उपरांत ही होता है। -मनुस्मृति 2/147


शंका 7- प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए क्या करना पड़ता था?


समाधान- प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए शिक्षित और गुणवान दोनों होना पड़ता था।


मनु का उपदेश देखे-


वेदों में पारंगत आचार्य द्वारा शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के उपरांत ही उसका वास्तविक मनुष्य जन्म होता है।-मनुस्मृति 2/148


ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, ये तीन वर्ण विद्याध्ययन से दूसरा जन्म प्राप्त करते हैं। विद्याध्ययन न कर पाने वाला शूद्र, चौथा वर्ण है।-मनुस्मृति 10/4


आजकल कुछ लोग केवल इसलिए अपने आपको ब्राह्मण कहकर जाति का अभिमान दिखाते है क्यूंकि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे। यह सरासर गलत है। योग्यता अर्जित किये बिना कोई ब्राह्मण नहीं बन सकता। हमारे प्राचीन ब्राह्मण अपने तप से अपनी विद्या से अपने ज्ञान से सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शन करते थे। इसीलिए हमारे आर्यव्रत देश विश्वगुरु था।


शंका 8-ब्राह्मण को श्रेष्ठ क्यों माने?


समाधान- ब्राह्मण एक गुणवाचक वर्ण है। समाज का सबसे ज्ञानी, बुद्धिमान, शिक्षित, समाज का मार्गदर्शन करने वाला, त्यागी, तपस्वी व्यक्ति ही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी बनता है। इसीलिए ब्राह्मण वर्ण श्रेष्ठ है। वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण को अगर सबसे अधिक सम्मान दिया गया है तो ब्राह्मण को सबसे अधिक गलती करने पर दंड भी दिया गया है।


मनु का उपदेश देखे-


एक ही अपराध के लिए शूद्र को सबसे दंड कम दंड, वैश्य को दोगुना, क्षत्रिय को तीन गुना और ब्राह्मण को सोलह या 128 गुणा दंड मिलता था।- मनु 8/337 एवं 8/338


इन श्लोकों के आधार पर कोई भी मनु महाराज को पक्षपाती नहीं कह सकता।


शंका 9- क्या शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र बन सकता है?


समाधान -ब्राह्मण, शूद्र आदि वर्ण क्यूंकि गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर विभाजित है। इसलिए इनमें परिवर्तन संभव है। कोई भी व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण नहीं होता। अपितु शिक्षा प्राप्ति के पश्चात उसके वर्ण का निर्धारण होता है।


मनु का उपदेश देखे-


ब्राह्मण शूद्र बन सकता और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते है। -मनुस्मृति 10/64


शरीर और मन से शुद्ध- पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्राह्मण जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है। -मनुस्मृति 9/335


जो मनुष्य नित्य प्रात: और सांय ईश्वर आराधना नहीं करता उसको शूद्र समझना चाहिए। -मनुस्मृति 2/103


जब तक व्यक्ति वेदों की शिक्षाओं में दीक्षित नहीं होता वह शूद्र के ही समान है।-मनुस्मृति 2/172


ब्राह्मण- वर्णस्थ व्यक्ति श्रेष्ठ–अतिश्रेष्ठ व्यक्तियों का संग करते हुए और नीच- नीचतर व्यक्तिओं का संग छोड़कर अधिक श्रेष्ठ बनता जाता है। इसके विपरीत आचरण से पतित होकर वह शूद्र बन जाता है। -मनुस्मृति 4/245


जो ब्राह्मण,क्षत्रिय या वैश्य वेदों का अध्ययन और पालन छोड़कर अन्य विषयों में ही परिश्रम करता है, वह शूद्र बन जाता है। -मनुस्मृति 2/168


शंका 10. क्या आज जो अपने आपको ब्राह्मण कहते है वही हमारी प्राचीन विद्या और ज्ञान की रक्षा करने वाले प्रहरी थे?


समाधान- आजकल जो व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर अगर प्राचीन ब्राह्मणों के समान वैदिक धर्म की रक्षा के लिए पुरुषार्थ कर रहा है तब तो वह निश्चित रूप से ब्राह्मण के समान सम्मान का पात्र है। अगर कोई व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर ब्राह्मण धर्म के विपरीत कर्म कर रहा है। तब वह किसी भी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने के लायक नहीं है। एक उदहारण लीजिये। एक व्यक्ति यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है, शाकाहारी है, चरित्रवान है और धर्म के लिए पुरुषार्थ करता है। उसका वर्ण ब्राह्मण कहलायेगा चाहे वह शूद्र पिता की संतान हो। उसके विपरीत एक व्यक्ति अनपढ़ है, मांसाहारी है, चरित्रहीन है और किसी भी प्रकार से समाज हित का कोई कार्य नहीं करता, चाहे उसके पिता कितने भी प्रतिष्ठित ब्राह्मण हो, किसी भी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने लायक नहीं है। केवल चोटी पहनना और जनेऊ धारण करने भर से कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। इन दोनों वैदिक व्रतों से जुड़े हुए कर्म अर्थात धर्म का पालन करना अनिवार्य हैं। प्राचीन काल में धर्म रूपी आचरण एवं पुरुषार्थ के कारण ब्राह्मणों का मान था।


इस लेख के माध्यम से मैंने वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण शब्द को लेकर सभी भ्रांतियों के निराकारण का प्रयास किया हैं। ब्राह्मण शब्द की वेदों में बहुत महत्ता है। मगर इसकी महत्ता का मुख्य कारण जन्मना ब्राह्मण होना नहीं अपितु कर्मणा ब्राह्मण होना है। मध्यकाल में हमारी वैदिक वर्ण व्यवस्था बदल कर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। विडंबना यह है कि इस बिगाड़ को हम आज भी दोह रहे है। जातिवाद से हिन्दू समाज की एकता समाप्त हो गई। भाई भाई में द्वेष हो गया। इसी कारण से हम कमजोर हुए तो विदेशी विधर्मियों के गुलाम बने। हिन्दुओं के 1200 वर्षों के दमन का अगर कोई मुख्य कारण है तो वह जातिवाद है। वही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। आईये इस जातिवाद रूपी शत्रु को को जड़ से नष्ट करने का संकल्प ले।

Monday, August 17, 2020

21 अक्टूबर 1943 और 15 अगस्त 1947 की असली कहानी।

 नमस्कार दोस्तों,


क्या 15 अगस्त सच में स्वतंत्रता दिवस है या विभाजन दिवस है? और असल स्वतंत्रता दिवस किस दिन होता है? जानिए


आइए पहले इतिहास को जानें।


इतिहास के पन्ने कहते है कि 15 अगस्त को भारत का विभाजन हुआ था और मुसलमानों ने भारत राष्ट्र के दो टुकड़े किए थे। और इसके लिए ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने इसी नारे के साथ चुनाव लड़ा था कि हम मुसलमानों को अलग से इस्लामिक मुल्क बना कर देंगें और 99% मुसलमानों ने मुस्लिम लीग को वोट दिया वो भी इस लिए की भारत के 2 टुकड़े कर अलग इस्लामिक मुल्क चाहिए। मुस्लिम लीग चुनाव जीत गयी और मुल्क का विभाजन हुआ। जिन्ना पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनें और नेहरू भारत के प्रधानमंत्री बनें। 15 अगस्त 1947 पंजाब में 50 हज़ार से ज्यादा स्त्रियों का सड़क पर बलात्कार हुआ। सरकारी आँकड़े कर मुताबिक 23 लाख लोगों का क़त्ल हुआ। बाकि तो गितनी ही नहीं है मगर नेहरू दिल्ली को के अंदर ताजपोशी की जल्दबाजी में निश्चिंत शपत ले रहे थे।


इसका जिम्मेदार कौन? जिन्होंनें 23 लाख से ज्यादा लोगों का क़त्ल और बच्चों की हत्या,बोर स्त्रियों का बलात्कार कराया। मेरी तरफ से इन सब के आरोपी और जिम्मेदार गाँधी, जिन्ना,और नेहरू थे। मगर इनपर कोई आरोप नहीं है। यह खूनी हीरो है अपने अपने देश में। यही दुर्भाग्य है।


भारत का असल स्वतंत्रता दिवस किस दिन होता है यह भी जानिए- 


21 अक्टूबर 1943 को भारत में पहली सरकार आज़ाद हिंद फौज ने लाल किले पर तिरंगा फहराया और 12 देशों ने भारत की आज़ादी को मान्यता दी और समर्थन किया। और आज़ाद हिंद फौज के प्रधान नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी ही भारत के पहले प्रधानमंत्री है। और देश 21 अक्टूबर 1943 को ही आज़ाद घोषित हो गया था।


आप सभी लोग सत्य को धारण करें इतिहास को पढ़े कि 21 अक्टूबर 1943 को देश स्वतंत्र हुआ और पहले प्रधानमंत्री नेता जी सुभाष चंद्र बोस बनें। और 15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ और भारत राष्ट्र के दो टुकड़े हुए और दूसरा टुकड़ा इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान बना।


आप सभी को यह जानकारी कैसी लगी कमेन्ट जरूर बताएँ।


धन्यवाद🙏

Wednesday, June 17, 2020

उत्तर दिशा में सिर करके क्यों नहीं सोना चाहिए।

नमस्ते दोस्तों

उत्तर दिशा में सिर करके क्यों नहीं सोना चाहिए?

आजकल लोग बिना समझें अपनी किसी भी बात को अन्धविश्वास कह देते है और मनमर्जी की बात जो किसी भी सत्य और प्रमाण पर खरी नहीं होती उसको सही तरीका मानते है।

चलिए जानते है आखिर इसके पीछे क्या विज्ञान छुपा है।

पृथ्वी के दो ध्रुव है उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव।
इन ध्रुवों में चुम्बकीय प्रभाव रहता है।
जो स्थान जिस ध्रुव के नजदीक अर्थात प्रभाव में होता है वहाँ के लोगों को उस ध्रुव की और सिर करके नहीं सोना चाहिए।

जैसे भारत उत्तरी ध्रुव के प्रभाव क्षेत्र में आता है तो भारत के लोगों को उत्तर दिशा में सिर करके नहीं सोना चाहिए। क्योंकि उत्तरी ध्रुव का चुम्बकीय प्रभाव उसके शरीर के रक्त प्रवाह पर पड़ता है जैसे उत्तर दिशा में सर करके सोने से रक्त प्रवाह सिर की तरफ बढ़ जाता है और सिर में बहुत बारीक कोशिकाएँ होती है और रक्त के असामान्य प्रवाह से मानसिक रोग हो सकता है जैसे अत्यधिक विचार आना,मन विचलित होना,नींद न आने की समस्या यहाँ तक की मौत तक हो सकती है। उत्तर दिशा में सोना यह बेहद नुकसान देह है।

यह जानकारी आपको कैसी लगी कमेंट्स करके जरूर बताएं।

धन्यवाद।

Monday, June 15, 2020

हनुमान जी बन्दर नहीं थे, वाल्मीकि रामायण से प्रमाण।

नमस्ते दोस्तों,

मैं योगीराज सिंह,

आज हम जानेंगे क्या हनुमान जी बन्दर थे इसके प्रमाण वाल्मीकि रामायण से ही देंगें। कि हनुमान जी बन्दर नहीं थे।

आइये वाल्मीकि रामायण में देखते है हनुमान जी को क्या कहा गया है उनके क्या गुण कहें गए है।

पहला प्रमाण 

वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी को वानर लिखा है। वानर शब्द का अर्थ होता है वन में रहने वाले नर(मनुष्य)।

दूसरा प्रमाण
वाल्मीकि रामायण में जब हनुमान जी श्री राम से मिलते है तब श्री राम छोटे भाई लक्षण से कहते है। 

जिसे ऋग्वेद की शिक्षा नहीं मिली ,जिसको यजुर्वेद नहीं किया और जिसको सामवेद का ज्ञान नहीं वो इस प्रकार सुन्दर भाषा में वार्तालाप नहीं कर सकता। - वाल्मीकि रामायण किष्किंधा काण्ड तृतीय सर्ग श्लोक २८ ।

क्या कोई बन्दर वेदों का ज्ञाता हो सकता है। बिलकुल नहीं।
अफ़सोस होता है कि वाल्मीकि रामायण के प्रमाणों से उलट कई पाखण्डी जो मनगढंत कहानी बनाते है और अर्थ का अनर्थ करते है।
उन्होंने वेदों के विद्वान हनुमान जी को बन्दर समझ लिया। मगर रामायण में हनुमान जी को बन्दर बताया ही नहीं। बल्कि वानर कहा गया है।

यह जानकारी आपको कैसी लगी जरूर बताएँ।

धन्यवाद।



' (एकादशी)। Ekādaśī रहस्य एवं महत्व

(एकादशी)। Ekādaśī  रहस्य एवं महत्व – एकादशी जिसका अर्थ है "ग्यारह", एक हिंदू कैलेंडर माह में होने वाले दो चंद्र चरणों में से प्रत्...