Thursday, December 31, 2020


1 जनवरी नया साल या खतना दिवस? जानिए सच।


 बाइबिल में नए विधान में चैप्टर लूकस आयत 21 में लिखा है 

जीसस क्राइस्ट के जन्म के आठवें दिन उनका खतना हुआ और उसी दिन उनका नाम येशु रखा गया।

विश्व में चर्च इस दिन को खतना दिवस के रूप में मनाते है क्योंकि वो जानते है।

मगर आप दिसम्बर मतलब दसवें महीने को बारहवाँ महीना मानते हो। 

रोमन कलेंडर के हिसाब से भी

September- सातवां महीना

October- आठवां महीना

November- नोंवां महीना

December- दसवां महीना

और बेवकूफी के साथ 1 जनवरी को नया साल मनाते हैं।

1 जनवरी प्रकृति में कुछ नया नहीं होता फिर आपके लिए कुछ नया कैसे हो सकता है?

मानसिक गुलामी में और मौज मस्ती में वास्तविकता को नज़रंदाज़ मत करें।

धन्यवाद🙏

आपका हितैषी
योगीराज सिंह ठाकुर

Friday, December 18, 2020

ब्राह्मण शब्द को लेकर भ्रांतियां एवं उनका निवारण,

 ब्राह्मण शब्द को लेकर भ्रांतियां एवं उनका निवारण,

ब्राह्मण शब्द को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं। इनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। क्यूंकि हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातिवाद है। ब्राह्मण शब्द को सत्य अर्थ को न समझ पाने के कारण जातिवाद को बढ़ावा मिला है।


शंका 1 ब्राह्मण की परिभाषा बताये?

समाधान-

पढने-पढ़ाने से,चिंतन-मनन करने से, ब्रह्मचर्य, अनुशासन, सत्यभाषण आदि व्रतों का पालन करने से,परोपकार आदि सत्कर्म करने से, वेद,विज्ञान आदि पढने से,कर्तव्य का पालन करने से, दान करने से और आदर्शों के प्रति समर्पित रहने से मनुष्य का यह शरीर ब्राह्मण किया जाता है।-मनुस्मृति 2/28


शंका 2 ब्राह्मण जाति है अथवा वर्ण है?


समाधान- ब्राह्मण वर्ण है जाति नहीं। वर्ण का अर्थ है चयन या चुनना और सामान्यत: शब्द वरण भी यही अर्थ रखता है। व्यक्ति अपनी रूचि, योग्यता और कर्म के अनुसार इसका स्वयं वरण करता है, इस कारण इसका नाम वर्ण है। वैदिक वर्ण व्यवस्था में चार वर्ण है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।


ब्राह्मण का कर्म है विधिवत पढ़ना और पढ़ाना, यज्ञ करना और कराना, दान प्राप्त करना और सुपात्रों को दान देना।


क्षत्रिय का कर्म है विधिवत पढ़ना, यज्ञ करना, प्रजाओं का पालन-पोषण और रक्षा करना, सुपात्रों को दान देना, धन ऐश्वर्य में लिप्त न होकर जितेन्द्रिय रहना।


वैश्य का कर्म है पशुओं का लालन-पोषण, सुपात्रों को दान देना, यज्ञ करना,विधिवत अध्ययन करना, व्यापार करना,धन कमाना,खेती करना।


शुद्र का कर्म है सभी चारों वर्णों के व्यक्तियों के यहाँ पर सेवा या श्रम करना।


शुद्र शब्द को मनु अथवा वेद ने कहीं भी अपमानजनक, नीचा अथवा निकृष्ठ नहीं माना है। मनु के अनुसार चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य एवं शूद्र आर्य है।- मनु 10/4


शंका 3- मनुष्यों में कितनी जातियां है ?


समाधान- मनुष्यों में केवल एक ही जाति है। वह है "मनुष्य"। अन्य की जाति नहीं है।


शंका 4- चार वर्णों का विभाजन का आधार क्या है?


समाधान- वर्ण बनाने का मुख्य प्रयोजन कर्म विभाजन है। वर्ण विभाजन का आधार व्यक्ति की योग्यता है। आज भी शिक्षा प्राप्ति के उपरांत व्यक्ति डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि बनता है। जन्म से कोई भी डॉक्टर, इंजीनियर, वकील नहीं होता। इसे ही वर्ण व्यवस्था कहते है।


शंका 5- कोई भी ब्राह्मण जन्म से होता है अथवा गुण, कर्म और स्वाभाव से होता है?


समाधान- व्यक्ति की योग्यता का निर्धारण शिक्षा प्राप्ति के पश्चात ही होता है। जन्म के आधार पर नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति के गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर उसके वर्ण का चयन होता हैं। कोई व्यक्ति अनपढ़ हो और अपने आपको ब्राह्मण कहे तो वह गलत है।


मनु का उपदेश पढ़िए-


जैसे लकड़ी से बना हाथी और चमड़े का बनाया हुआ हरिण सिर्फ़ नाम के लिए ही हाथी और हरिण कहे जाते है वैसे ही बिना पढ़ा ब्राह्मण मात्र नाम का ही ब्राह्मण होता है।-मनुस्मृति 2/157


शंका 6-क्या ब्राह्मण पिता की संतान केवल इसलिए ब्राह्मण कहलाती है कि उसके पिता ब्राह्मण है?


समाधान- यह भ्रान्ति है कि ब्राह्मण पिता की संतान इसलिए ब्राह्मण कहलाएगी क्यूंकि उसका पिता ब्राह्मण है। जैसे एक डॉक्टर की संतान तभी डॉक्टर कहलाएगी जब वह MBBS उत्तीर्ण कर लेगी। जैसे एक इंजीनियर की संतान तभी इंजीनियर कहलाएगी जब वह BTech उत्तीर्ण कर लेगी। बिना पढ़े नहीं कहलाएगी। वैसे ही ब्राह्मण एक अर्जित जाने वाली पुरानी उपाधि हैं।


मनु का उपदेश पढ़िए-


माता-पिता से उत्पन्न संतति का माता के गर्भ से प्राप्त जन्म साधारण जन्म है। वास्तविक जन्म तो शिक्षा पूर्ण कर लेने के उपरांत ही होता है। -मनुस्मृति 2/147


शंका 7- प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए क्या करना पड़ता था?


समाधान- प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए शिक्षित और गुणवान दोनों होना पड़ता था।


मनु का उपदेश देखे-


वेदों में पारंगत आचार्य द्वारा शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के उपरांत ही उसका वास्तविक मनुष्य जन्म होता है।-मनुस्मृति 2/148


ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, ये तीन वर्ण विद्याध्ययन से दूसरा जन्म प्राप्त करते हैं। विद्याध्ययन न कर पाने वाला शूद्र, चौथा वर्ण है।-मनुस्मृति 10/4


आजकल कुछ लोग केवल इसलिए अपने आपको ब्राह्मण कहकर जाति का अभिमान दिखाते है क्यूंकि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे। यह सरासर गलत है। योग्यता अर्जित किये बिना कोई ब्राह्मण नहीं बन सकता। हमारे प्राचीन ब्राह्मण अपने तप से अपनी विद्या से अपने ज्ञान से सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शन करते थे। इसीलिए हमारे आर्यव्रत देश विश्वगुरु था।


शंका 8-ब्राह्मण को श्रेष्ठ क्यों माने?


समाधान- ब्राह्मण एक गुणवाचक वर्ण है। समाज का सबसे ज्ञानी, बुद्धिमान, शिक्षित, समाज का मार्गदर्शन करने वाला, त्यागी, तपस्वी व्यक्ति ही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी बनता है। इसीलिए ब्राह्मण वर्ण श्रेष्ठ है। वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण को अगर सबसे अधिक सम्मान दिया गया है तो ब्राह्मण को सबसे अधिक गलती करने पर दंड भी दिया गया है।


मनु का उपदेश देखे-


एक ही अपराध के लिए शूद्र को सबसे दंड कम दंड, वैश्य को दोगुना, क्षत्रिय को तीन गुना और ब्राह्मण को सोलह या 128 गुणा दंड मिलता था।- मनु 8/337 एवं 8/338


इन श्लोकों के आधार पर कोई भी मनु महाराज को पक्षपाती नहीं कह सकता।


शंका 9- क्या शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र बन सकता है?


समाधान -ब्राह्मण, शूद्र आदि वर्ण क्यूंकि गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर विभाजित है। इसलिए इनमें परिवर्तन संभव है। कोई भी व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण नहीं होता। अपितु शिक्षा प्राप्ति के पश्चात उसके वर्ण का निर्धारण होता है।


मनु का उपदेश देखे-


ब्राह्मण शूद्र बन सकता और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते है। -मनुस्मृति 10/64


शरीर और मन से शुद्ध- पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्राह्मण जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है। -मनुस्मृति 9/335


जो मनुष्य नित्य प्रात: और सांय ईश्वर आराधना नहीं करता उसको शूद्र समझना चाहिए। -मनुस्मृति 2/103


जब तक व्यक्ति वेदों की शिक्षाओं में दीक्षित नहीं होता वह शूद्र के ही समान है।-मनुस्मृति 2/172


ब्राह्मण- वर्णस्थ व्यक्ति श्रेष्ठ–अतिश्रेष्ठ व्यक्तियों का संग करते हुए और नीच- नीचतर व्यक्तिओं का संग छोड़कर अधिक श्रेष्ठ बनता जाता है। इसके विपरीत आचरण से पतित होकर वह शूद्र बन जाता है। -मनुस्मृति 4/245


जो ब्राह्मण,क्षत्रिय या वैश्य वेदों का अध्ययन और पालन छोड़कर अन्य विषयों में ही परिश्रम करता है, वह शूद्र बन जाता है। -मनुस्मृति 2/168


शंका 10. क्या आज जो अपने आपको ब्राह्मण कहते है वही हमारी प्राचीन विद्या और ज्ञान की रक्षा करने वाले प्रहरी थे?


समाधान- आजकल जो व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर अगर प्राचीन ब्राह्मणों के समान वैदिक धर्म की रक्षा के लिए पुरुषार्थ कर रहा है तब तो वह निश्चित रूप से ब्राह्मण के समान सम्मान का पात्र है। अगर कोई व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर ब्राह्मण धर्म के विपरीत कर्म कर रहा है। तब वह किसी भी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने के लायक नहीं है। एक उदहारण लीजिये। एक व्यक्ति यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है, शाकाहारी है, चरित्रवान है और धर्म के लिए पुरुषार्थ करता है। उसका वर्ण ब्राह्मण कहलायेगा चाहे वह शूद्र पिता की संतान हो। उसके विपरीत एक व्यक्ति अनपढ़ है, मांसाहारी है, चरित्रहीन है और किसी भी प्रकार से समाज हित का कोई कार्य नहीं करता, चाहे उसके पिता कितने भी प्रतिष्ठित ब्राह्मण हो, किसी भी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने लायक नहीं है। केवल चोटी पहनना और जनेऊ धारण करने भर से कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। इन दोनों वैदिक व्रतों से जुड़े हुए कर्म अर्थात धर्म का पालन करना अनिवार्य हैं। प्राचीन काल में धर्म रूपी आचरण एवं पुरुषार्थ के कारण ब्राह्मणों का मान था।


इस लेख के माध्यम से मैंने वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण शब्द को लेकर सभी भ्रांतियों के निराकारण का प्रयास किया हैं। ब्राह्मण शब्द की वेदों में बहुत महत्ता है। मगर इसकी महत्ता का मुख्य कारण जन्मना ब्राह्मण होना नहीं अपितु कर्मणा ब्राह्मण होना है। मध्यकाल में हमारी वैदिक वर्ण व्यवस्था बदल कर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। विडंबना यह है कि इस बिगाड़ को हम आज भी दोह रहे है। जातिवाद से हिन्दू समाज की एकता समाप्त हो गई। भाई भाई में द्वेष हो गया। इसी कारण से हम कमजोर हुए तो विदेशी विधर्मियों के गुलाम बने। हिन्दुओं के 1200 वर्षों के दमन का अगर कोई मुख्य कारण है तो वह जातिवाद है। वही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। आईये इस जातिवाद रूपी शत्रु को को जड़ से नष्ट करने का संकल्प ले।

Monday, August 17, 2020

21 अक्टूबर 1943 और 15 अगस्त 1947 की असली कहानी।

 नमस्कार दोस्तों,


क्या 15 अगस्त सच में स्वतंत्रता दिवस है या विभाजन दिवस है? और असल स्वतंत्रता दिवस किस दिन होता है? जानिए


आइए पहले इतिहास को जानें।


इतिहास के पन्ने कहते है कि 15 अगस्त को भारत का विभाजन हुआ था और मुसलमानों ने भारत राष्ट्र के दो टुकड़े किए थे। और इसके लिए ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने इसी नारे के साथ चुनाव लड़ा था कि हम मुसलमानों को अलग से इस्लामिक मुल्क बना कर देंगें और 99% मुसलमानों ने मुस्लिम लीग को वोट दिया वो भी इस लिए की भारत के 2 टुकड़े कर अलग इस्लामिक मुल्क चाहिए। मुस्लिम लीग चुनाव जीत गयी और मुल्क का विभाजन हुआ। जिन्ना पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनें और नेहरू भारत के प्रधानमंत्री बनें। 15 अगस्त 1947 पंजाब में 50 हज़ार से ज्यादा स्त्रियों का सड़क पर बलात्कार हुआ। सरकारी आँकड़े कर मुताबिक 23 लाख लोगों का क़त्ल हुआ। बाकि तो गितनी ही नहीं है मगर नेहरू दिल्ली को के अंदर ताजपोशी की जल्दबाजी में निश्चिंत शपत ले रहे थे।


इसका जिम्मेदार कौन? जिन्होंनें 23 लाख से ज्यादा लोगों का क़त्ल और बच्चों की हत्या,बोर स्त्रियों का बलात्कार कराया। मेरी तरफ से इन सब के आरोपी और जिम्मेदार गाँधी, जिन्ना,और नेहरू थे। मगर इनपर कोई आरोप नहीं है। यह खूनी हीरो है अपने अपने देश में। यही दुर्भाग्य है।


भारत का असल स्वतंत्रता दिवस किस दिन होता है यह भी जानिए- 


21 अक्टूबर 1943 को भारत में पहली सरकार आज़ाद हिंद फौज ने लाल किले पर तिरंगा फहराया और 12 देशों ने भारत की आज़ादी को मान्यता दी और समर्थन किया। और आज़ाद हिंद फौज के प्रधान नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी ही भारत के पहले प्रधानमंत्री है। और देश 21 अक्टूबर 1943 को ही आज़ाद घोषित हो गया था।


आप सभी लोग सत्य को धारण करें इतिहास को पढ़े कि 21 अक्टूबर 1943 को देश स्वतंत्र हुआ और पहले प्रधानमंत्री नेता जी सुभाष चंद्र बोस बनें। और 15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ और भारत राष्ट्र के दो टुकड़े हुए और दूसरा टुकड़ा इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान बना।


आप सभी को यह जानकारी कैसी लगी कमेन्ट जरूर बताएँ।


धन्यवाद🙏

Wednesday, June 17, 2020

उत्तर दिशा में सिर करके क्यों नहीं सोना चाहिए।

नमस्ते दोस्तों

उत्तर दिशा में सिर करके क्यों नहीं सोना चाहिए?

आजकल लोग बिना समझें अपनी किसी भी बात को अन्धविश्वास कह देते है और मनमर्जी की बात जो किसी भी सत्य और प्रमाण पर खरी नहीं होती उसको सही तरीका मानते है।

चलिए जानते है आखिर इसके पीछे क्या विज्ञान छुपा है।

पृथ्वी के दो ध्रुव है उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव।
इन ध्रुवों में चुम्बकीय प्रभाव रहता है।
जो स्थान जिस ध्रुव के नजदीक अर्थात प्रभाव में होता है वहाँ के लोगों को उस ध्रुव की और सिर करके नहीं सोना चाहिए।

जैसे भारत उत्तरी ध्रुव के प्रभाव क्षेत्र में आता है तो भारत के लोगों को उत्तर दिशा में सिर करके नहीं सोना चाहिए। क्योंकि उत्तरी ध्रुव का चुम्बकीय प्रभाव उसके शरीर के रक्त प्रवाह पर पड़ता है जैसे उत्तर दिशा में सर करके सोने से रक्त प्रवाह सिर की तरफ बढ़ जाता है और सिर में बहुत बारीक कोशिकाएँ होती है और रक्त के असामान्य प्रवाह से मानसिक रोग हो सकता है जैसे अत्यधिक विचार आना,मन विचलित होना,नींद न आने की समस्या यहाँ तक की मौत तक हो सकती है। उत्तर दिशा में सोना यह बेहद नुकसान देह है।

यह जानकारी आपको कैसी लगी कमेंट्स करके जरूर बताएं।

धन्यवाद।

Monday, June 15, 2020

हनुमान जी बन्दर नहीं थे, वाल्मीकि रामायण से प्रमाण।

नमस्ते दोस्तों,

मैं योगीराज सिंह,

आज हम जानेंगे क्या हनुमान जी बन्दर थे इसके प्रमाण वाल्मीकि रामायण से ही देंगें। कि हनुमान जी बन्दर नहीं थे।

आइये वाल्मीकि रामायण में देखते है हनुमान जी को क्या कहा गया है उनके क्या गुण कहें गए है।

पहला प्रमाण 

वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी को वानर लिखा है। वानर शब्द का अर्थ होता है वन में रहने वाले नर(मनुष्य)।

दूसरा प्रमाण
वाल्मीकि रामायण में जब हनुमान जी श्री राम से मिलते है तब श्री राम छोटे भाई लक्षण से कहते है। 

जिसे ऋग्वेद की शिक्षा नहीं मिली ,जिसको यजुर्वेद नहीं किया और जिसको सामवेद का ज्ञान नहीं वो इस प्रकार सुन्दर भाषा में वार्तालाप नहीं कर सकता। - वाल्मीकि रामायण किष्किंधा काण्ड तृतीय सर्ग श्लोक २८ ।

क्या कोई बन्दर वेदों का ज्ञाता हो सकता है। बिलकुल नहीं।
अफ़सोस होता है कि वाल्मीकि रामायण के प्रमाणों से उलट कई पाखण्डी जो मनगढंत कहानी बनाते है और अर्थ का अनर्थ करते है।
उन्होंने वेदों के विद्वान हनुमान जी को बन्दर समझ लिया। मगर रामायण में हनुमान जी को बन्दर बताया ही नहीं। बल्कि वानर कहा गया है।

यह जानकारी आपको कैसी लगी जरूर बताएँ।

धन्यवाद।



Thursday, June 11, 2020

Netflix का हिन्दू विरोधी एजेंडा चालू है,

नमस्ते दोस्तों,

Netflix का हिन्दू विरोधी एजेंडा चालू है।
हाल ही के दिनों में एक फ़िल्म जिसका नाम छिप्पा है
जिसका लेखक सफदार रहमान है
और डायरेक्टर भी यही सफदार रहमान है।
इस फिल्म में हिन्दुओं के आदर्श श्रीराम भक्त हनुमान जी के लिए अनर्गल बत्तमीजी की गयी।
उनका अपमान किया गया। आये दिन हिन्दुओं को और उनके देवीदेवताओं के खिलाफ बोलने का जो फैशन चलाने का ठेका ले लिया है इसका परिणाम बहुत भयंकर होगा।
इस फिल्म में एक वाक़्यात बताया गया है कि हनुमान जी को एक औरत थप्पड़ लगाती है और हनुमान जी दुम दबाकर भाग जाते है।
हिन्दुओं के आदर्शों को के बारे में,देवताओं के बारे में मज़ाक करना एक फैशन हो गया जिसका अंत अब करना चाहिए।
दोस्तों यह वीडियो शेयर करें क्योंकि हिन्दुओं को जानकारी ही नहीं है कि हिंदुओं के खिलाफ कितना बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा है।

धन्यवाद 
सनातन धर्म की जय हो।

Wednesday, May 27, 2020

कथा जिहाद-

कथा जिहाद- कई कथावाचकों द्वारा 
व्यासपीठ पर बैठ कर सनातन विरोधी स्वर सुनते आप देख सकते है यह संख्या एक दो नहीं बल्कि सैंकड़ों में है। कई कथा वाचकों के ऐसा बोलने की कई वजह हो सकती है। जैसे
1- धर्म का ज्ञान नहीं होना। मजहब,पंथ और धर्म में फर्क पता न होना।
2- अपने आपको सेक्यूलर दिखाने के लिए अनर्गल ढोंग करना।
3- धर्म को पैसों की खातिर दाव पर लगा देना।
4- सनातन धर्म को मानने वालों को धर्म से दूर अधर्म और मजहब की और धकेलना।
5- सनातन धर्म को कम समझना और उसके हिस्से होने की हीन भावना।

यह कथावाचकों की गलती से या जानबूझकर किया जाने वाला अन्याय सनातन धर्म को मानने वालों की कब्र खोदने के लिए काफी है। 
चित्रलेखा जी कहती है नमाज़ की आवाज़ सुनाई दे तो कथा रोक कर उनके अल्लाह को प्रणाम करें क्या फर्क पड़ता है।
मुरारी बापू कहते है कि अल्लाह की बंदगी करो।
कलमा पढ़वा रहे व्यासपीठ से।
कई कथावाचक भारत पर आक्रमण करने वाले औरंगज़ेब की तारीफों के पुल बाँध रहे है वो औरंगज़ेब जिसने भारत पर हमला किया,भारत की स्त्रियों के बलात्कार किये,मंडी लगवाई,बेचा गया।
अकबर जैसे बलात्कारी,लुटेरों की तारीफ करने में लगे है।
इनकी यह नासमझी सनातन धर्म की लड़कियों को इस्लाम की तरफ लव जिहाद की ओर धकेल रही है। 
सनातनियों का अहित हो रहा है इसमें। भारत के साथ,सनातन धर्म के साथ,और भारत के इतिहास के साथ ग़द्दारी है ऐसा करना।

अंत में यही कहूँगा ऐसे भ्रमित करने वाले कथावाचकों का विरोध करें और उनको धर्म गुरु मानने की गलती न करें।

आपकी क्या राय है आप कमेंट्स बॉक्स में जरूर दें। 
धन्यवाद

Sunday, May 10, 2020

Mother's day का इतिहास और परम्परा!

Mother's day की शुरूवात कैसे हुई। जानिए-

यूरोप में प्लेटो के समय से पहले ही एक परम्परा चलती आ रही है कि वहाँ की महिलाएँ बच्चों को मिशनरी में छोड़ आती थी अनाथ हुए बच्चों को मिशनरी सिस्टर्स पाला करती है। तो यूरोप की महिलाएँ साल में किसी एक दिन के लिए उन मिशनरी में जाती है और उन बच्चों को स्तनपान कराती थी।और उनको एक दिन के लिए माँ बनने की फॉर्मेलिटी करती है और उस दिन को वो महिलाएँ mother's day मनाती है। यही mother's day का इतिहास और परंपरा है।

 वास्तविकता यही है कि शादी के बाद स्त्री और पुरुष का खुद का पूर्ण अंश या सम्मान नहीं होता बल्कि आधा आधा बंटा होता है।
 यदि किसी पुरुष का पूर्ण सम्मान करना होतो उसकी पत्नी का भी सम्मान करना होगा। यदि पत्नी का पूर्ण सम्मान करना है तो उसके पति का भी सम्मान करना होगा। 
इसलिए भारत मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जाता है जो साथ में मनाया जाता है। 
आप किसी पेड़ को पानी देना चाहे तो उसके साथ आपको धरती को भी पानी देना होगा क्योंकि पेड़ और धरती आपस में जुड़े हुए है ऐसे ही मातृ पितृ पूजन ही सार्थक है।
कृपया आपको जन्म देनें में,पालन पोषण में दोनों का योगदान रहा है इसलिए मातृ-पितृ दिवस मनाईये। जिसमें दोनों साथ हो।

 पोस्ट पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। यदि आपको पोस्ट पसन्द आयी होतो अपनी प्रतिक्रिया जरूर व्यक्त करें।
पुनः धन्यवाद।




Wednesday, April 22, 2020

आत्मनिरीक्षण/ Self Enquiry

आत्मनिरीक्षण क्या है?

जब तक हम जीवित रहते हैँ, हर क्षण कार्य में लगे रहते हैं, वे चाहे अच्छे हों या बुरे । प्रत्येक दिन हमने सुबह से लेकर शाम तक क्या-क्या अच्छा और क्या-क्या बुरा कार्य किया और उन्हें करने से हमें वया लाभ और क्या हानि हुईं? हमने क्यब्व-क्या नहीं किया और उसे नहीं करने से क्या-वया लाभ और हानि हमें हुई? यह सबकुछ देखना ही आत्मनिरीक्षण है । इम बात क्रो यूं समझें कि अपने सभी गुगब्ब-दोषों, अच्छाईयों-बुरग़इयों, शुभ-अशुभ विचारों, वाणी और शरीर के कार्यों का स्मरण करना ही आत्मनिरीक्षण है । अपने मन को देखना, अपनी संवेदनाओं क्रो देखना, अपने क्रिया कलापों को देखना और अपनी स्मृतियों क्रो भी देखना, इन सबको साक्षी भाव से देखना आत्म निरीक्षण है । इसके माध्यम से हम अपनी वास्तविक वर्तमान स्थिति का परिचय प्रात करते हैं कि अभी हमृ उत्थान की ओर अग्रसर हो रहे हैं या पता कौ ओंर । एक शिविरार्थी के लिए भी आत्म निरीक्षण के माध्यम से यह जानना जरूरी होता है कि इतनी दूर से शिविर में आकर, इतने अनुशासन में रहते हुए उसने जो तपस्या र्का है, इतना सारा समय अपनी आदर्श दिनचर्या को पूरी करने में लगाया है, तो इससे उसे आज क्या नई उपलब्धि प्राप्त हुई ९" एक छोटा सा व्यापारी जो दिनभर अपना व्यापार करता है, रात को दुकान बंद करने से पहले बो भी यह जरूर देखता है कि मैँने आज कुछ कमाया है या नहीं ? अगर कमाया है तो वो कमाया हुआ धन आज के लिए पर्याप्त था या नहीं ? अथवा आज कुछ घाटा तो नहीं हुआ? जैसे एक व्यापारी अपने लाभ या नुकसान का ध्यान रखता है, वैसे ही एक किसान भी यह देखता है कि फसल पाने हेतु जो बीज उसने बोये हैं, बो ठोक तरह से ऊग रहे हैं या नहीं ? इसी तरह से लौकिक क्षेत्र में भी हर जगह, हर व्यक्ति इस बात कौ विशेष तौर पर देखता है । इस तरीके से अवलोकन करना, देखना, जाँचना, परखना उसके जीवन की सफलता के लिए है । वह अगर दैनिक हिसाबकिताब की जाँच नहीं करेगा, वही-खाते तैयार नहीं करेगा, तो उसके लिये अपने प्रत्येक काम क्रो और अच्छे ढंग से करना संभव ही नहीं होगा । संदेश यही है कि प्रतिदिन 18 घटै काम करने का आउटपुट (प्राप्ति) जाने बिना, उस व्यापारी के किसी भी कार्य में और उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई प्रगति भी नहीं हो सकेगी ।

व्यापार हो या पढाई, कार्य कोई भी हो, सुचारू रूप से सबका लेखा जोखा आँर मापतौल रखना अति आवश्यक होता है । बिना इसके उसका व्यापार चौपट हो जाएगा । क्योंकि उसे पता ही नहीं चलेगा कि कौन सा व्यापार करने में कितना नुकसान हुआ, और वह नुकसान क्यों हुआ ? जिस प्रकार लौकिक क्षेत्र में प्रगति करने के लिए अपना दैनिक लेखा-जोखा रखना अति आवश्यक है । ठीक इसी तरह से अध्यात्म के क्षेत्र में भी प्रगति करने केलिए स्वयं के द्वारा प्रतिदिन, प्रतिपल किए जा रहे कर्मों का लेखा-जोखा रखना, अपने क्रियाकलापों पर बारीक नज़र रखना, अपने गुण-दोषों, अच्छाई -बुरइं क्रो ढूंढ़ना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक होता है और इसी को आत्मनिरीक्षण कहते हैं । आत्म निरीक्षण रूपी कसौटी पर स्वयं को कसने पर ही पता चलत है कि इस मानव संसार रूपी व्यापार मंडी में हम ऊँचे उठ रहे है या नीचे गिर रहे है और    तभी हम वास्तविक ऊंचाइयों को छूने केे लिए भी कर सकेंगें।

इस लेख को पढ़ने के लिए आपका बहुँत बहुँत धन्यवाद।

Thursday, April 16, 2020

हम तो अपने दुश्मन को ऐसी सजा देते है।

हम तो अपने दुश्मन को ऐसी सज़ा देते है,हाथ लगाते नहीं नज़रों में गिरा देते है।

तब भी कोई हिमाक़त-ए-जुर्रत करता है, तो ख़ाक में मिला देते है।

Wednesday, April 15, 2020

आर्य कौन है?

राष्ट्र विषय

 हमारा नाम आर्य है , हिन्दू नहीं

वेद शास्त्र मनुस्मृति, उपनिषदु रामपुयण महाभारत, गीता आदि सभी प्राचीन ग्रन्धों में आर्यचाब्द ही मिलता है, हिन्दू नहीं । संस्कृत कै कोष शब्दकल्पदुम में आर्य शब्द कै अर्थ-मूज्य, श्रेष्ठ, धार्मिक, उदार न्यायकारी मेहनत करने _चाला आदि किये है । आर्यव्रता विसृजन्तो अयि क्षमि। (ऋरबेद) "अर्थआर्य चे कहलाते हैँ जो सत्य, न्याय, अहिसां, पवित्रता, परोपकार, पुरुषार्थ आदि शुभ काम करते हैं। ५ कृपवन्तो विश्वमार्यंम्। (ऋग्वेद) अर्थ-सरि संसार क्रो आर्य ( श्रेष्ठ) -बनाआं । र अनार्य इति मामार्या: पुत्रं विक्रायर्क ध्रुवम्। (बाल्मीकि रामायण )

अर्ध-(रांजा दशरथ राम को -वन में भेजना न चाहते थे) वे कहते हैँ-३आर्य लोग

(सज्जन) मुझें पुत्र बेचने वाले क्रो निश्चय ही अनार्य (दुष्ट) ५ बताएंगे। महाभारत में आर्य शब्द वाले जो षलोक पाये जाते हैं, उनमें ' आर्य ' शब्द का अर्य है-जो शान्तत्रुए वैर क्रो नहीं बढाता, जो अभिमान नहीं करता, जो निराश नहीं ढोता, जोपुपुसीबत में भी पाप नहीं करता; जो "सुखी होने पर बहुत अधिक ग्रसन्नता की दिखाता, जो दूसरों कै दु .ख में कभी " प्रसन्त नहीं होता, जो कायर नहीं है और तो दान देकर पश्चात्ताप नही करता। .

दिन्दू शब्द मुसलमानों ने घृणा कै रूप में हमें दिया है। यह फारसी भाषा कां शब्द दै। फारसी भाषा के शब्द कोश में ' दिन्दू का अर्थ है-चौर डाकू गुस्सा काफिर, काला आदि। मुसलमान आक्रमणकारी "जब भारत में आए उन्होंने यहाँ कै लोगों को लूटा, मारा क्या पकड का गुलाम बनाकर अपने साथ अपने देश में ले गण वहां रो जाकर उनसे अनाज पिसवाया, घास खुदवाया, मल-मूत्र आदि उठवाथा क्या
ब्लाज़श्यों मैं बेचा। तब उन्होंने यहाँ कै लोगों क्रो ' हिन्दू नाम दिया । आठंवीं _सदी से पहले यानि कि मुसलमानो कै आने से पहले भारतवर्ष में हिन्दू शब्द का प्रचलन न था सब जगह आर्य और आर्यावर्त शब्द ही प्रसिद्ध थे। चीनी यात्री ह्यूनसाग भारत मे सातवी सदी मॅ (सत् ६३१ से ६४५ तक) आया था। वह इस देश का नाम आएँर्य देश लिखता है।

महर्षि दयानन्द सरस्वती कै उदूगार-सज्जन । अब हिन्दू नाम हूँका त्याग करो औंर 'आर्य' तथा आर्यावर्त ' इन नामों का अभिमान करो । गुणं भ्रष्ट हेम लोग हुए, परन्तु नाम भ्रष्ट तो हमे न होना चाहिये।

सत् १८७० मॅ काशी मॅ टेढा नीम नामक स्थान पर कांशी कै राजा कै अधीन एक धर्मसभा हुई। सभा" सें विश्वनाथ शर्मा बाबा शास्वी आदि ४५ विद्वानों ने बिचार विमर्श कै बाद यह व्यवस्था दी श्री क्रि "हिन्दू नाम हमारा नही है यह मुसलमानो की भाषा का है और इसका अर्थ है अधर्मी। अत इसे कोई स्वीकार न करे।

हिन्दु-शब्दों हि यत्ननेषु अधर्मीजन बोधक. । अतो नाहर्लि तत् शब्द बीध्यता सकलो जन । ।

Wednesday, April 8, 2020

क्या हनुमान जी बन्दर थे? क्या वानर का मतलब बन्दर होता है?

क्या हनुमान जी बन्दर थे?

रामायण में वानर शब्द लिखा है बन्दर शब्द नहीं लिखा।
संस्कृत भाषा के शब्दकोष में वानर शब्द का अर्थ वन में रहने वाले नर(मनुष्य) को कहते है।आजकल कथाकार जो सिर्फ स्थानीय बोलियाँ बोलते संस्कृत भाषा और व्याकरण का उनको आधा अधूरा चुराया गया ज्ञान और अज्ञान का मिश्रण है उनसें पूछों संस्कृत भाषा के शब्दकोष में वानर शब्द का क्या अर्थ है तो उनको पास कोई जवाब नहीं। मगर बिना व्याकरण के वानर शब्द का अर्थ उन्होनें बन्दर बना लिया।कमाल हैना। खेर हनुमान जी वानर थे वेदों के प्रकाण्ड ज्ञानी थे वो बन्दर नहीं थे।

हनुमान जी के जन्मदिवस की सभी को शुभकामनाएँ।🙏🏻

Wednesday, March 25, 2020

Happy New Year

आप सभी को विक्रम संवत २०७७ नव वर्ष हार्दिक शुभकामनाएं।
लेकिन

नए साल की पहचान क्या है? यह जानना बहुँत जरुरी है।
नया वर्ष तब होता है जब ईश्वर की बनाई प्रथ्वी पर कुछ नया हो।जैसे १२ महीनों में ६ ऋतुएँ होती है पहली ऋतु वसन्त मधु(मार्च) माधव(अप्रैल) अर्थात चैत्र से वैशाख तक।जब ६ ऋतुओं का चक्र पूर्ण होता है और वापस वसन्त ऋतु आती है जब प्रकृति का नवीनीकरण होता है फिर से उसको पुरे साल के लिए नया किया जाता है तैयार किया जाता है।मौसम नया होना,पेड़ों पर नए फल,फूल,पत्ते,जमीन में नयी फसल आना पूरी प्रकृति को नया जीवन दिया जाता है उस वक़्त आप नया साल मानें तब कह सकते है कि आप पढ़े लिखे है जानते समझते है,जब ईश्वर और उसकी प्रकृति कुछ नया नहीं कर करती तब आप किसी भी महीने को नया साल मानते हो।

 क्या आप ज्ञान के दुश्मन है? क्या ईश्वर और उसकी प्रकृति के नियमों के खिलाफ जा कर किसी भी 1 तारीख को या किसी महीने को नया साल मानते हो तो क्या नया साल हो जाएगा? नहीं आपके कहने से किसी तारीख को या किसी महीने में नया साल नहीं माना जाएगा, यह एक बेवकूफी सोच है,यह मनमानी है। प्रकृति को पसन्द करने वाले उसके नियम से ही से नया दिन नया साल तय करें।
जब वसन्त ऋतु में प्रकृति का नवीनीकरण हो रहा है तभी नया साल होता है और इस सच्चाई को आत्मसात करें।

सभी को पुनः नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

Wednesday, January 15, 2020

ओ३म्..
मकर (माघे) संक्रान्ति (माघी ) (माघ-विहु)को हार्दिक शुभकामना सहित....

मकर संक्रान्ति पर्वको महत्वलाई जानेर श्रद्धापूर्वक मनाऔं..!

मकर संक्रान्तिको पर्व प्रत्येक वर्ष माघ १गते देशभरि हरेकले आ-आफ्नै तरिकाले मनाउने गरिन्छ। आजभोलि हामीले पर्व त मनाउँछौं तर धेरैलाई कुनै पर्वको महत्व र त्यस सङ्ग जोडिएको घटनाहरुको ज्ञान हुँदैन। अतः त्यसैले हरेक पर्वको सबै पक्षको बारेमा संक्षेपमा जान्नु आवश्यक छ।
मकर संक्रान्ति पर्वको पहिलो महत्व हाम्रो सौर्यमण्डल तथा मकर राशि सङ्ग सम्बन्धित छ। हामीलाई थाहा छ कि पृथिवीको दुई प्रकारको गति हुन्छ- एक यो आफ्नो अक्षमा घुम्छ र दोस्रो गतिमा पृथ्वीले सूर्यको ओरिपरी परिक्रमा गर्दछ जुन एक वर्षमा पूरा हुन्छ। एउटा परिक्रमाको काल वा समयलाई सौर्यवर्ष भनिन्छ। पृथिवीले सूर्यको परिक्रमा गर्ने जुन पथ हुन्छ त्यो केहि लाम्चो (वृत्ताकार) हुन्छ।
पृथ्वी मकर संक्रान्तिका दिन देखि हिँडेर पुनः यहि स्थानमा आइपुग्ने तथा सूर्यको पूरा एक फन्को मार्ने मार्ग वा परिधिलाई ‘‘क्रान्तिवृत्त” भनिन्छ। वैदिक ज्योतिषि शास्त्र द्वारा यो क्रान्तिवृत्तका १२ भाग कल्पित गरिएको छ र ति १२ भागहरुको नाम ति स्थानहरुमा आकाशका नक्षत्रपुंज सङ्ग मिलेर बनेका केहि मिल्दा-जुल्दा आकृति भएका पदार्थहरुको नाममा राखिएको छ। ति १२ नाम हुन्- मेष, वृष, मिथुन, कर्कट, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ र मीन।
क्रान्तिवृतमा कल्पित प्रत्येक भाग तथा नक्षत्रपुंजहरुको आकृतिलाई “राशि” भनिन्छ। पृथिवी जब एक राशि बाट अर्को राशिमा प्रवेश तथा संक्रमण गर्दछ त्यस संक्रमणलाई नै “संक्रान्ति” भनिन्छ। लोकाचारमा पृथिवीको संक्रमणलाई सूर्यको संक्रमण भन्न थालिएको छ। मकर संक्रान्तिको अर्थ सूर्य मकर संक्रान्तिका दिन मकर राशिमा प्रवेश गर्दछ। ६ महीना सम्म सूर्य क्रान्तिवृत देखि उत्तर तिर देखिन्छ र ६ महिना सम्म दक्षिण तिर। यिनै ६ महिनाको अवधिको नाम ‘अयन’ हो।
सूर्य उत्तर तिर उदय हुने ६ महिनाको अवधिको नाम ‘उत्तरायण’ र दक्षिण तिर देखिने अवधिको नाम ‘दक्षिणायन’ हो। उत्तरायण कालमा सूर्य उत्तर तिर बाट उदय भएको जस्तो देखिन्छ र यसमा दिनको समय बढ्दै जान्छ र रातको समय घट्दै जान्छ। दक्षिणायनमा सूर्योदय क्रान्तिवृत्तको दक्षिण तिर बाट उदय भएको जस्तो दृष्टिगोचर हुन्छ र यसमा दिनको समयावधि घट्छ र रात्रिको अवधिमा वृद्धि हुन्छ।
सूर्य जब मकर राशिमा प्रवेश गर्दछ वा संक्रान्त हुन्छ तब उत्तरायणको आरम्भ हुन्छ र कर्कट राशिमा प्रवेश भए पछी दक्षिणायनको आरम्भ भएको मानिन्छ। यी दुई अयनहरुको अवधि ६/६ महिनाको हुन्छ। उत्तरायणमा दिन लामा र रात छोटा हुनाले पृथिवीमा प्रकाशको अधिकता हुन्छ त्यसैले यो उत्तरायण कालको महत्व दक्षिणायन भन्दा अधिक मानिएको हो।
उत्तरायणको महत्वको आरम्भ मकर संक्रान्ति देखि हुने भएकोले मकर संक्रान्ति (माघ १ गते) को दिनलाई अधिक महत्वपूर्ण मानिन्छ र यसलाई पर्वको रूपमा मनाइने प्रथा परापूर्व काल देखि चली आएको छ। यो पनि जानकारी दिहालौं- ज्योतिष शास्त्रका विद्वानहरु भन्दछन् कि उत्तरायणको आरम्भ त मकर संकान्तिका दिन भन्दा पहिले देखि नै हुन्छ तर मकर संक्रान्तिको पर्वमा नै दुवै पर्व एक साथ मनाइने परम्परा चलिआएको छ। भविष्यमा यिनलाई अलग अलग तिथिमा मनाउनका लागि विचार पनि गर्न सकिने छ।
चाहे जेहोस्, यो पर्व मनाउनुको मुख्य उद्देश्य मकर संक्रान्तिको ज्ञान र ६ महिने उत्तरायणको आरम्भ सङ्ग छ जसबाट हाम्रा पूर्वजहरुको ज्योतिष विषयक ज्ञान र रुचि सङ्ग परिचित हुन सकियोस्।
क्रमशः...

' (एकादशी)। Ekādaśī रहस्य एवं महत्व

(एकादशी)। Ekādaśī  रहस्य एवं महत्व – एकादशी जिसका अर्थ है "ग्यारह", एक हिंदू कैलेंडर माह में होने वाले दो चंद्र चरणों में से प्रत्...