राष्ट्र विषय
हमारा नाम आर्य है , हिन्दू नहीं
वेद शास्त्र मनुस्मृति, उपनिषदु रामपुयण महाभारत, गीता आदि सभी प्राचीन ग्रन्धों में आर्यचाब्द ही मिलता है, हिन्दू नहीं । संस्कृत कै कोष शब्दकल्पदुम में आर्य शब्द कै अर्थ-मूज्य, श्रेष्ठ, धार्मिक, उदार न्यायकारी मेहनत करने _चाला आदि किये है । आर्यव्रता विसृजन्तो अयि क्षमि। (ऋरबेद) "अर्थआर्य चे कहलाते हैँ जो सत्य, न्याय, अहिसां, पवित्रता, परोपकार, पुरुषार्थ आदि शुभ काम करते हैं। ५ कृपवन्तो विश्वमार्यंम्। (ऋग्वेद) अर्थ-सरि संसार क्रो आर्य ( श्रेष्ठ) -बनाआं । र अनार्य इति मामार्या: पुत्रं विक्रायर्क ध्रुवम्। (बाल्मीकि रामायण )
अर्ध-(रांजा दशरथ राम को -वन में भेजना न चाहते थे) वे कहते हैँ-३आर्य लोग
(सज्जन) मुझें पुत्र बेचने वाले क्रो निश्चय ही अनार्य (दुष्ट) ५ बताएंगे। महाभारत में आर्य शब्द वाले जो षलोक पाये जाते हैं, उनमें ' आर्य ' शब्द का अर्य है-जो शान्तत्रुए वैर क्रो नहीं बढाता, जो अभिमान नहीं करता, जो निराश नहीं ढोता, जोपुपुसीबत में भी पाप नहीं करता; जो "सुखी होने पर बहुत अधिक ग्रसन्नता की दिखाता, जो दूसरों कै दु .ख में कभी " प्रसन्त नहीं होता, जो कायर नहीं है और तो दान देकर पश्चात्ताप नही करता। .
दिन्दू शब्द मुसलमानों ने घृणा कै रूप में हमें दिया है। यह फारसी भाषा कां शब्द दै। फारसी भाषा के शब्द कोश में ' दिन्दू का अर्थ है-चौर डाकू गुस्सा काफिर, काला आदि। मुसलमान आक्रमणकारी "जब भारत में आए उन्होंने यहाँ कै लोगों को लूटा, मारा क्या पकड का गुलाम बनाकर अपने साथ अपने देश में ले गण वहां रो जाकर उनसे अनाज पिसवाया, घास खुदवाया, मल-मूत्र आदि उठवाथा क्या
ब्लाज़श्यों मैं बेचा। तब उन्होंने यहाँ कै लोगों क्रो ' हिन्दू नाम दिया । आठंवीं _सदी से पहले यानि कि मुसलमानो कै आने से पहले भारतवर्ष में हिन्दू शब्द का प्रचलन न था सब जगह आर्य और आर्यावर्त शब्द ही प्रसिद्ध थे। चीनी यात्री ह्यूनसाग भारत मे सातवी सदी मॅ (सत् ६३१ से ६४५ तक) आया था। वह इस देश का नाम आएँर्य देश लिखता है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती कै उदूगार-सज्जन । अब हिन्दू नाम हूँका त्याग करो औंर 'आर्य' तथा आर्यावर्त ' इन नामों का अभिमान करो । गुणं भ्रष्ट हेम लोग हुए, परन्तु नाम भ्रष्ट तो हमे न होना चाहिये।
सत् १८७० मॅ काशी मॅ टेढा नीम नामक स्थान पर कांशी कै राजा कै अधीन एक धर्मसभा हुई। सभा" सें विश्वनाथ शर्मा बाबा शास्वी आदि ४५ विद्वानों ने बिचार विमर्श कै बाद यह व्यवस्था दी श्री क्रि "हिन्दू नाम हमारा नही है यह मुसलमानो की भाषा का है और इसका अर्थ है अधर्मी। अत इसे कोई स्वीकार न करे।
हिन्दु-शब्दों हि यत्ननेषु अधर्मीजन बोधक. । अतो नाहर्लि तत् शब्द बीध्यता सकलो जन । ।
हमारा नाम आर्य है , हिन्दू नहीं
वेद शास्त्र मनुस्मृति, उपनिषदु रामपुयण महाभारत, गीता आदि सभी प्राचीन ग्रन्धों में आर्यचाब्द ही मिलता है, हिन्दू नहीं । संस्कृत कै कोष शब्दकल्पदुम में आर्य शब्द कै अर्थ-मूज्य, श्रेष्ठ, धार्मिक, उदार न्यायकारी मेहनत करने _चाला आदि किये है । आर्यव्रता विसृजन्तो अयि क्षमि। (ऋरबेद) "अर्थआर्य चे कहलाते हैँ जो सत्य, न्याय, अहिसां, पवित्रता, परोपकार, पुरुषार्थ आदि शुभ काम करते हैं। ५ कृपवन्तो विश्वमार्यंम्। (ऋग्वेद) अर्थ-सरि संसार क्रो आर्य ( श्रेष्ठ) -बनाआं । र अनार्य इति मामार्या: पुत्रं विक्रायर्क ध्रुवम्। (बाल्मीकि रामायण )
अर्ध-(रांजा दशरथ राम को -वन में भेजना न चाहते थे) वे कहते हैँ-३आर्य लोग
(सज्जन) मुझें पुत्र बेचने वाले क्रो निश्चय ही अनार्य (दुष्ट) ५ बताएंगे। महाभारत में आर्य शब्द वाले जो षलोक पाये जाते हैं, उनमें ' आर्य ' शब्द का अर्य है-जो शान्तत्रुए वैर क्रो नहीं बढाता, जो अभिमान नहीं करता, जो निराश नहीं ढोता, जोपुपुसीबत में भी पाप नहीं करता; जो "सुखी होने पर बहुत अधिक ग्रसन्नता की दिखाता, जो दूसरों कै दु .ख में कभी " प्रसन्त नहीं होता, जो कायर नहीं है और तो दान देकर पश्चात्ताप नही करता। .
दिन्दू शब्द मुसलमानों ने घृणा कै रूप में हमें दिया है। यह फारसी भाषा कां शब्द दै। फारसी भाषा के शब्द कोश में ' दिन्दू का अर्थ है-चौर डाकू गुस्सा काफिर, काला आदि। मुसलमान आक्रमणकारी "जब भारत में आए उन्होंने यहाँ कै लोगों को लूटा, मारा क्या पकड का गुलाम बनाकर अपने साथ अपने देश में ले गण वहां रो जाकर उनसे अनाज पिसवाया, घास खुदवाया, मल-मूत्र आदि उठवाथा क्या
ब्लाज़श्यों मैं बेचा। तब उन्होंने यहाँ कै लोगों क्रो ' हिन्दू नाम दिया । आठंवीं _सदी से पहले यानि कि मुसलमानो कै आने से पहले भारतवर्ष में हिन्दू शब्द का प्रचलन न था सब जगह आर्य और आर्यावर्त शब्द ही प्रसिद्ध थे। चीनी यात्री ह्यूनसाग भारत मे सातवी सदी मॅ (सत् ६३१ से ६४५ तक) आया था। वह इस देश का नाम आएँर्य देश लिखता है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती कै उदूगार-सज्जन । अब हिन्दू नाम हूँका त्याग करो औंर 'आर्य' तथा आर्यावर्त ' इन नामों का अभिमान करो । गुणं भ्रष्ट हेम लोग हुए, परन्तु नाम भ्रष्ट तो हमे न होना चाहिये।
सत् १८७० मॅ काशी मॅ टेढा नीम नामक स्थान पर कांशी कै राजा कै अधीन एक धर्मसभा हुई। सभा" सें विश्वनाथ शर्मा बाबा शास्वी आदि ४५ विद्वानों ने बिचार विमर्श कै बाद यह व्यवस्था दी श्री क्रि "हिन्दू नाम हमारा नही है यह मुसलमानो की भाषा का है और इसका अर्थ है अधर्मी। अत इसे कोई स्वीकार न करे।
हिन्दु-शब्दों हि यत्ननेषु अधर्मीजन बोधक. । अतो नाहर्लि तत् शब्द बीध्यता सकलो जन । ।
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