आत्मनिरीक्षण क्या है?
जब तक हम जीवित रहते हैँ, हर क्षण कार्य में लगे रहते हैं, वे चाहे अच्छे हों या बुरे । प्रत्येक दिन हमने सुबह से लेकर शाम तक क्या-क्या अच्छा और क्या-क्या बुरा कार्य किया और उन्हें करने से हमें वया लाभ और क्या हानि हुईं? हमने क्यब्व-क्या नहीं किया और उसे नहीं करने से क्या-वया लाभ और हानि हमें हुई? यह सबकुछ देखना ही आत्मनिरीक्षण है । इम बात क्रो यूं समझें कि अपने सभी गुगब्ब-दोषों, अच्छाईयों-बुरग़इयों, शुभ-अशुभ विचारों, वाणी और शरीर के कार्यों का स्मरण करना ही आत्मनिरीक्षण है । अपने मन को देखना, अपनी संवेदनाओं क्रो देखना, अपने क्रिया कलापों को देखना और अपनी स्मृतियों क्रो भी देखना, इन सबको साक्षी भाव से देखना आत्म निरीक्षण है । इसके माध्यम से हम अपनी वास्तविक वर्तमान स्थिति का परिचय प्रात करते हैं कि अभी हमृ उत्थान की ओर अग्रसर हो रहे हैं या पता कौ ओंर । एक शिविरार्थी के लिए भी आत्म निरीक्षण के माध्यम से यह जानना जरूरी होता है कि इतनी दूर से शिविर में आकर, इतने अनुशासन में रहते हुए उसने जो तपस्या र्का है, इतना सारा समय अपनी आदर्श दिनचर्या को पूरी करने में लगाया है, तो इससे उसे आज क्या नई उपलब्धि प्राप्त हुई ९" एक छोटा सा व्यापारी जो दिनभर अपना व्यापार करता है, रात को दुकान बंद करने से पहले बो भी यह जरूर देखता है कि मैँने आज कुछ कमाया है या नहीं ? अगर कमाया है तो वो कमाया हुआ धन आज के लिए पर्याप्त था या नहीं ? अथवा आज कुछ घाटा तो नहीं हुआ? जैसे एक व्यापारी अपने लाभ या नुकसान का ध्यान रखता है, वैसे ही एक किसान भी यह देखता है कि फसल पाने हेतु जो बीज उसने बोये हैं, बो ठोक तरह से ऊग रहे हैं या नहीं ? इसी तरह से लौकिक क्षेत्र में भी हर जगह, हर व्यक्ति इस बात कौ विशेष तौर पर देखता है । इस तरीके से अवलोकन करना, देखना, जाँचना, परखना उसके जीवन की सफलता के लिए है । वह अगर दैनिक हिसाबकिताब की जाँच नहीं करेगा, वही-खाते तैयार नहीं करेगा, तो उसके लिये अपने प्रत्येक काम क्रो और अच्छे ढंग से करना संभव ही नहीं होगा । संदेश यही है कि प्रतिदिन 18 घटै काम करने का आउटपुट (प्राप्ति) जाने बिना, उस व्यापारी के किसी भी कार्य में और उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई प्रगति भी नहीं हो सकेगी ।
व्यापार हो या पढाई, कार्य कोई भी हो, सुचारू रूप से सबका लेखा जोखा आँर मापतौल रखना अति आवश्यक होता है । बिना इसके उसका व्यापार चौपट हो जाएगा । क्योंकि उसे पता ही नहीं चलेगा कि कौन सा व्यापार करने में कितना नुकसान हुआ, और वह नुकसान क्यों हुआ ? जिस प्रकार लौकिक क्षेत्र में प्रगति करने के लिए अपना दैनिक लेखा-जोखा रखना अति आवश्यक है । ठीक इसी तरह से अध्यात्म के क्षेत्र में भी प्रगति करने केलिए स्वयं के द्वारा प्रतिदिन, प्रतिपल किए जा रहे कर्मों का लेखा-जोखा रखना, अपने क्रियाकलापों पर बारीक नज़र रखना, अपने गुण-दोषों, अच्छाई -बुरइं क्रो ढूंढ़ना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक होता है और इसी को आत्मनिरीक्षण कहते हैं । आत्म निरीक्षण रूपी कसौटी पर स्वयं को कसने पर ही पता चलत है कि इस मानव संसार रूपी व्यापार मंडी में हम ऊँचे उठ रहे है या नीचे गिर रहे है और तभी हम वास्तविक ऊंचाइयों को छूने केे लिए भी कर सकेंगें।
इस लेख को पढ़ने के लिए आपका बहुँत बहुँत धन्यवाद।