Wednesday, April 22, 2020

आत्मनिरीक्षण/ Self Enquiry

आत्मनिरीक्षण क्या है?

जब तक हम जीवित रहते हैँ, हर क्षण कार्य में लगे रहते हैं, वे चाहे अच्छे हों या बुरे । प्रत्येक दिन हमने सुबह से लेकर शाम तक क्या-क्या अच्छा और क्या-क्या बुरा कार्य किया और उन्हें करने से हमें वया लाभ और क्या हानि हुईं? हमने क्यब्व-क्या नहीं किया और उसे नहीं करने से क्या-वया लाभ और हानि हमें हुई? यह सबकुछ देखना ही आत्मनिरीक्षण है । इम बात क्रो यूं समझें कि अपने सभी गुगब्ब-दोषों, अच्छाईयों-बुरग़इयों, शुभ-अशुभ विचारों, वाणी और शरीर के कार्यों का स्मरण करना ही आत्मनिरीक्षण है । अपने मन को देखना, अपनी संवेदनाओं क्रो देखना, अपने क्रिया कलापों को देखना और अपनी स्मृतियों क्रो भी देखना, इन सबको साक्षी भाव से देखना आत्म निरीक्षण है । इसके माध्यम से हम अपनी वास्तविक वर्तमान स्थिति का परिचय प्रात करते हैं कि अभी हमृ उत्थान की ओर अग्रसर हो रहे हैं या पता कौ ओंर । एक शिविरार्थी के लिए भी आत्म निरीक्षण के माध्यम से यह जानना जरूरी होता है कि इतनी दूर से शिविर में आकर, इतने अनुशासन में रहते हुए उसने जो तपस्या र्का है, इतना सारा समय अपनी आदर्श दिनचर्या को पूरी करने में लगाया है, तो इससे उसे आज क्या नई उपलब्धि प्राप्त हुई ९" एक छोटा सा व्यापारी जो दिनभर अपना व्यापार करता है, रात को दुकान बंद करने से पहले बो भी यह जरूर देखता है कि मैँने आज कुछ कमाया है या नहीं ? अगर कमाया है तो वो कमाया हुआ धन आज के लिए पर्याप्त था या नहीं ? अथवा आज कुछ घाटा तो नहीं हुआ? जैसे एक व्यापारी अपने लाभ या नुकसान का ध्यान रखता है, वैसे ही एक किसान भी यह देखता है कि फसल पाने हेतु जो बीज उसने बोये हैं, बो ठोक तरह से ऊग रहे हैं या नहीं ? इसी तरह से लौकिक क्षेत्र में भी हर जगह, हर व्यक्ति इस बात कौ विशेष तौर पर देखता है । इस तरीके से अवलोकन करना, देखना, जाँचना, परखना उसके जीवन की सफलता के लिए है । वह अगर दैनिक हिसाबकिताब की जाँच नहीं करेगा, वही-खाते तैयार नहीं करेगा, तो उसके लिये अपने प्रत्येक काम क्रो और अच्छे ढंग से करना संभव ही नहीं होगा । संदेश यही है कि प्रतिदिन 18 घटै काम करने का आउटपुट (प्राप्ति) जाने बिना, उस व्यापारी के किसी भी कार्य में और उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई प्रगति भी नहीं हो सकेगी ।

व्यापार हो या पढाई, कार्य कोई भी हो, सुचारू रूप से सबका लेखा जोखा आँर मापतौल रखना अति आवश्यक होता है । बिना इसके उसका व्यापार चौपट हो जाएगा । क्योंकि उसे पता ही नहीं चलेगा कि कौन सा व्यापार करने में कितना नुकसान हुआ, और वह नुकसान क्यों हुआ ? जिस प्रकार लौकिक क्षेत्र में प्रगति करने के लिए अपना दैनिक लेखा-जोखा रखना अति आवश्यक है । ठीक इसी तरह से अध्यात्म के क्षेत्र में भी प्रगति करने केलिए स्वयं के द्वारा प्रतिदिन, प्रतिपल किए जा रहे कर्मों का लेखा-जोखा रखना, अपने क्रियाकलापों पर बारीक नज़र रखना, अपने गुण-दोषों, अच्छाई -बुरइं क्रो ढूंढ़ना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक होता है और इसी को आत्मनिरीक्षण कहते हैं । आत्म निरीक्षण रूपी कसौटी पर स्वयं को कसने पर ही पता चलत है कि इस मानव संसार रूपी व्यापार मंडी में हम ऊँचे उठ रहे है या नीचे गिर रहे है और    तभी हम वास्तविक ऊंचाइयों को छूने केे लिए भी कर सकेंगें।

इस लेख को पढ़ने के लिए आपका बहुँत बहुँत धन्यवाद।

Thursday, April 16, 2020

हम तो अपने दुश्मन को ऐसी सजा देते है।

हम तो अपने दुश्मन को ऐसी सज़ा देते है,हाथ लगाते नहीं नज़रों में गिरा देते है।

तब भी कोई हिमाक़त-ए-जुर्रत करता है, तो ख़ाक में मिला देते है।

Wednesday, April 15, 2020

आर्य कौन है?

राष्ट्र विषय

 हमारा नाम आर्य है , हिन्दू नहीं

वेद शास्त्र मनुस्मृति, उपनिषदु रामपुयण महाभारत, गीता आदि सभी प्राचीन ग्रन्धों में आर्यचाब्द ही मिलता है, हिन्दू नहीं । संस्कृत कै कोष शब्दकल्पदुम में आर्य शब्द कै अर्थ-मूज्य, श्रेष्ठ, धार्मिक, उदार न्यायकारी मेहनत करने _चाला आदि किये है । आर्यव्रता विसृजन्तो अयि क्षमि। (ऋरबेद) "अर्थआर्य चे कहलाते हैँ जो सत्य, न्याय, अहिसां, पवित्रता, परोपकार, पुरुषार्थ आदि शुभ काम करते हैं। ५ कृपवन्तो विश्वमार्यंम्। (ऋग्वेद) अर्थ-सरि संसार क्रो आर्य ( श्रेष्ठ) -बनाआं । र अनार्य इति मामार्या: पुत्रं विक्रायर्क ध्रुवम्। (बाल्मीकि रामायण )

अर्ध-(रांजा दशरथ राम को -वन में भेजना न चाहते थे) वे कहते हैँ-३आर्य लोग

(सज्जन) मुझें पुत्र बेचने वाले क्रो निश्चय ही अनार्य (दुष्ट) ५ बताएंगे। महाभारत में आर्य शब्द वाले जो षलोक पाये जाते हैं, उनमें ' आर्य ' शब्द का अर्य है-जो शान्तत्रुए वैर क्रो नहीं बढाता, जो अभिमान नहीं करता, जो निराश नहीं ढोता, जोपुपुसीबत में भी पाप नहीं करता; जो "सुखी होने पर बहुत अधिक ग्रसन्नता की दिखाता, जो दूसरों कै दु .ख में कभी " प्रसन्त नहीं होता, जो कायर नहीं है और तो दान देकर पश्चात्ताप नही करता। .

दिन्दू शब्द मुसलमानों ने घृणा कै रूप में हमें दिया है। यह फारसी भाषा कां शब्द दै। फारसी भाषा के शब्द कोश में ' दिन्दू का अर्थ है-चौर डाकू गुस्सा काफिर, काला आदि। मुसलमान आक्रमणकारी "जब भारत में आए उन्होंने यहाँ कै लोगों को लूटा, मारा क्या पकड का गुलाम बनाकर अपने साथ अपने देश में ले गण वहां रो जाकर उनसे अनाज पिसवाया, घास खुदवाया, मल-मूत्र आदि उठवाथा क्या
ब्लाज़श्यों मैं बेचा। तब उन्होंने यहाँ कै लोगों क्रो ' हिन्दू नाम दिया । आठंवीं _सदी से पहले यानि कि मुसलमानो कै आने से पहले भारतवर्ष में हिन्दू शब्द का प्रचलन न था सब जगह आर्य और आर्यावर्त शब्द ही प्रसिद्ध थे। चीनी यात्री ह्यूनसाग भारत मे सातवी सदी मॅ (सत् ६३१ से ६४५ तक) आया था। वह इस देश का नाम आएँर्य देश लिखता है।

महर्षि दयानन्द सरस्वती कै उदूगार-सज्जन । अब हिन्दू नाम हूँका त्याग करो औंर 'आर्य' तथा आर्यावर्त ' इन नामों का अभिमान करो । गुणं भ्रष्ट हेम लोग हुए, परन्तु नाम भ्रष्ट तो हमे न होना चाहिये।

सत् १८७० मॅ काशी मॅ टेढा नीम नामक स्थान पर कांशी कै राजा कै अधीन एक धर्मसभा हुई। सभा" सें विश्वनाथ शर्मा बाबा शास्वी आदि ४५ विद्वानों ने बिचार विमर्श कै बाद यह व्यवस्था दी श्री क्रि "हिन्दू नाम हमारा नही है यह मुसलमानो की भाषा का है और इसका अर्थ है अधर्मी। अत इसे कोई स्वीकार न करे।

हिन्दु-शब्दों हि यत्ननेषु अधर्मीजन बोधक. । अतो नाहर्लि तत् शब्द बीध्यता सकलो जन । ।

Wednesday, April 8, 2020

क्या हनुमान जी बन्दर थे? क्या वानर का मतलब बन्दर होता है?

क्या हनुमान जी बन्दर थे?

रामायण में वानर शब्द लिखा है बन्दर शब्द नहीं लिखा।
संस्कृत भाषा के शब्दकोष में वानर शब्द का अर्थ वन में रहने वाले नर(मनुष्य) को कहते है।आजकल कथाकार जो सिर्फ स्थानीय बोलियाँ बोलते संस्कृत भाषा और व्याकरण का उनको आधा अधूरा चुराया गया ज्ञान और अज्ञान का मिश्रण है उनसें पूछों संस्कृत भाषा के शब्दकोष में वानर शब्द का क्या अर्थ है तो उनको पास कोई जवाब नहीं। मगर बिना व्याकरण के वानर शब्द का अर्थ उन्होनें बन्दर बना लिया।कमाल हैना। खेर हनुमान जी वानर थे वेदों के प्रकाण्ड ज्ञानी थे वो बन्दर नहीं थे।

हनुमान जी के जन्मदिवस की सभी को शुभकामनाएँ।🙏🏻

🌿🌼 चातुर्मास 🌼🌿

 🌿🌼 चातुर्मास 🌼🌿                 ( १७.०७.२०२४ से १२.११.२०२४ तक ) चातुर्मास यानी के चार महीने की वह अवधि जब भगवान विष्‍णु ४ महीने की योग ...